सामाजिक क्रिया
“हर अंतर्दृष्टि और बोध-सम्पन्न व्यक्ति का यह दायित्व होता है कि लेखों में जो कुछ भी प्रकट किया गया है उन्हें वे यथार्थ और क्रिया रूप में परिणत करने का प्रयास करें .... वर्तमान समय में, सचमुच, वही इन्सान है जो स्वयं को सम्पूर्ण मानवजाति की सेवा के लिए समर्पित करता है।”
— बहाउल्लाह
जब किसी खास पास-पड़ोस या गांव में समुदाय-निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आती है तो उस कार्य में शामिल मित्र सतत बढ़ते हुए क्रम में उस जनसंख्या के सम्मुख प्रस्तुत सामाजिक और भौतिक मुद्दों को लेकर सोच-विचार करते हैं। बहाई धर्म की आध्यात्मिक शिक्षाओं में उन्हें ऐसी अंतर्दृष्टियां और ऐसे सिद्धान्त प्राप्त होते हैं जिन्हें वे स्त्री-पुरुष की समानता को बढ़ावा देने, पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा जैसे मुद्दों के निराकरण के संदर्भ में लागू करना आरंभ करते हैं। ऐसे मुद्दों के बारे में जब जागरूकता उत्पन्न हो जाती है तो अध्ययन-वृत्त कक्षाओं, किशोर समूहों और सामूहिक उपासना के माध्यम से प्राप्त साझा दृष्टिकोण से सम्पन्न मित्रों के समूह अपने समुदाय को बेहतर बनाने के लिए प्रयास शुरू करते हैं। अनौपचारिक प्रयास और सेवा प्रायोजन कई बार और अधिक विकसित होकर ट्यूटोरियल कक्षाओं और सामुदायिक विद्यालय के अधिक स्थाई रूप ग्रहण कर लेते हैं। उनमें से भी कुछ बाद में और सुनियोजित आकार ग्रहण करके जटिल विकासोन्मुख संस्थाओं और बड़े शैक्षणिक स्कूलों में बदल जाते हैं।
हालांकि ऐसे प्रयत्नों और सामाजिक क्रिया के प्रयास और जटिलता के स्तरों में भिन्नता होती है किंतु ऐसी सभी सामाजिक कियाओं में एक बात समान है – वे सब मानवजाति की आध्यात्मिक और भौतिक प्रगति के दृष्टिकोण से सम्पन्न हैं, मानवजाति की एकता और न्याय के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं, अपने समुदायों को बेहतर बनाने के लिए ज्ञान के सृजन और प्रयोग में भागीदारी निभाने के लिए सभी लोगों की क्षमता के विकास पर केन्द्रित होते हैं और परामर्श, अध्ययन, क्रिया और समीक्षा के चक्रों से गुजरते हुए अपने क्रिया से सीख ग्रहण करते हुए, आगे बढ़ते जाने का तौर-तरीका अपनाते हैं।.